खौलते तेल में जिंदा जला दिया गया था यह फ्रीडम फाइटर, राजस्थान की धरती का था लाल

Rajasthan Freedom Fighter Sagarmal Gopa Story

Freedom Fighter Sagarmal Gopa Story : भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों में एक नाम ‘सागरमल गोपा’ का भी हैं। वीरों की धरती राजस्थान के जैसलमेर शहर में जन्मे ‘सागरमल गोपा’ वो नाम है, जिसने जैसलमेर रियासत को भारत में शामिल करने में अहम भूमिका अदा की। गोपा भारत के वो स्वतन्त्रता सेनानी एवं देशभक्त थे, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ निडर होकर आवाज बुलंद की और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। अपने क्रांतिकारी भाषणों और लेखों से उन्होंने अंग्रेजी शासन को पसंद करने वाले जैसलमेर रियासत के महाराजा जवाहर सिंह से नाराजगी मोल ले ली थी।

3 नवंबर 1900 को एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में ‘सागरमल गोपा’ का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम अखेराज गोपा था, जो महाराजा जवाहर सिंह के दरबारी हुआ करते थे। उस समय देश अंग्रेजों के आतंक से परेशान था। वहीं, दूसरी तरफ सुदूर रेगिस्तान में एक रियासत थी जैसलमेर, जिसमें महारावल जवाहर सिंह के कारिंदे से प्रजा परेशान थी। रियासत में पत्र-पत्रिकाओं के छपने और पढ़ने पर रोक लगा रखी थी। इस निरंकुश शासन से जनता त्रस्त थी। यह वही समय था, जब रियासत का एक जवान माड़ू शासन के खिलाफ खड़ा हुआ, नाम था ‘सागरमल गोपा।’ वह आजादी का दीवाना अंग्रेजी शासन और दरबार से भिड़ गया।

“क्रांति की आंधी न रुकेगी, मगर सेकेंड की सलाह से शासन गंवाओगे ! नौ रत्न के पंजों से बचो भूप जवाहर .. तुम जैसाण के किले पर तिरंगा पाओगे।” ये बोल थे – उस देशभक्त क्रांतिकारी सागरमल गोपा के, जिसने रियासत के साथ-साथ देश को गुलामी की जंजीरों से निकालने की कसम खाली थी। गोपा ने रियासत के नियमों के खिलाफ जाकर एक नहीं बल्कि तीन-तीन किताबें लिखी। उनकी लिखी पुस्तकों में ‘जैसलमेर का गुंडा राज’, ‘रघुनाथ सिंह का मुकदमा’ और ‘आज़ादी के दीवाने’ प्रमुख थी। इन किताबों से उन्होंने जैसलमेर के शासन की आलोचना की और जनता को न्यायपालिका के प्रति सजग किया। इन किताबों ने जैसलमेर रियासत के हुक्मरानों को डरा दिया था। महारावल, सागरमल की इन हरकतों से क्रोधित हो गए और उन्हें तंग किया जाने लगा था।

रियासत के हुक्मरानों की प्रताड़ना से तंग आकर सागरमल गोपा नागपुर चले गए। वहां जाकर भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। सन 1941 में उनके पिता का देहांत हो गया और उन्हें लौटकर जैसलमेर आना पड़ा। महारावल जवाहर सिंह उनसे खुन्नस खाए बैठे थे, आते ही गोपा को गिरफ्तार (25 मई 1941 ) कर लिया गया। उन्हें छह साल जेल की सजा सुनाई गई। जेल में क्रूर थानेदार गुमान सिंह द्वारा उन्हें यातनाएं दी जाने लगी। यह काफी पीड़ादायक था। इन सब के बाबजूद सागरमल गोपा तो आजादी का दीवाना था, उसने माफी मांगने से मना कर दिया। उसे मंजूर नहीं था कि जहां एक तरफ सारा देश अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा हैं, वहीं दूरी तरफ जैसलमेर गोरों की जी हजूरी करें। इसकी भनक तत्कालीन मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास को लगी।

मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास रेजीडेंट का 6 अप्रैल को जैसलमेर जाने का कार्यक्रम तय हुआ। लेकिन उससे पहले ही 3 अप्रैल को खबर आई कि सागरमल गोपा ने जेल में आत्महत्या कर ली हैं। लोग बताते है कि यह आत्महत्या नहीं थी, उस आजादी के दीवाने को जेल में मिट्टी का गर्म तेल डालकर जिंदा जलाया गया था। 4 अप्रैल 1946 को उनकी दर्दनाक मौत हो गई। कुछ सालों बाद 30 मार्च 1949 को जैसलमेर आजाद भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय डाक विभाग ने सन 1986 में सागरमल गोपा की शहादत को जनमानस की स्मृतियों में जिंदा रखने के लिए उनकी याद में एक डाक टिकट भी जारी किया था।

भारत सरकार ने Sagarmal Gopa की मौत की जांच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया। इस कमेटी ने उनकी हत्या को आत्महत्या साबित कर दिया। भले ही कमेटी की रिपोर्ट चाहे जो भी रही हो लेकिन जैसलमेर की हवाओं में क्रांति घुल चुकी थी। गोपा क्रांति की अलख जगाकर अमर शहीद हो गए। और हां एक बात और, सागरमल गोपा वो शख्स थे जिसने महज 15 साल की उम्र में ही जैसलमेर में एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी। वह 1921 में महात्मा गांधीजी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा भी बने थे। उन्होंने जैसलमेर से इस आंदोलन का हिस्सा बनने का आह्वान किया था।

राजस्थानी फिल्म ‘गोपा द फ्रीडम फाइटर’ क्रांतिकारी सागरमल गोपा के जीवन पर आधारित एक बेहतरीन फिल्म हैं। यह फिल्म दो भागों में रिलीज की जा चुकी हैं और YouTube पर बिल्कुल फ्री में देखने को उपलब्ध हैं। फिल्म के माध्यम से भी आप जैसलमेर के उस स्वतंत्रता सेनानी के जीवन से परिचित हो सकेंगे।